हो न जिसका खंड खंड।
ऐसा अखंड है अपना झारखंड।।
यहां की ऋतु, यहां का मौसम
यहां का झरना, नदियों का संगम
यहां का साखू, यहां का गम्हार
चट्टानों से टकराती, प्रपातों की बौछार
मस्ती में झूमें हर ऋतु,
चाहे शीत हो या बसंत,,
हो न जिसका खंड खंड।
ऐसा अखंड है अपना झारखंड।।
यहीं हुआ है सिद्धो-कान्हू, बिरसा का अवतार
यहीं रहते हैं खड़िया, संथाली, मुंडारी परिवार
अल्बर्ट एक्का, बुद्धू भगत की यादों का न होगा पतन
कैसे भूलेगा डॉ. जयपाल सिंह और धोनी को वतन
ये धरा है उन धुरंधरों का,
जिनके इरादे होते हैं बुलंद,,
हो न जिसका खंड खंड।
ऐसा अखंड है अपना झारखंड।।
यहां का सरहुल, यहां का करमा
यहां का छठ, यहां का जितिया
त्योहारों में घर देवलोक बन जाते हैं
मानो स्वयं विधाता धरती पर आते हैं
क्या बखान करें उस क्षण का?
जिस क्षण हवा त्रिरूप में चलती है मंद मंद,,
हो न जिसका खंड खंड।
ऐसा अखंड है अपना झारखंड।।
यहां है देवी-देवों का धाम
छिन्नमस्तिका, मधुबन, वैद्यनाथ धाम
यहां है झारखंडी, दिउड़ी मंदिर
यहीं अवस्थित है बासुकीनाथ धाम
झारखंड भारत की खूबसूरती है,
और मलूटी है मंदिरों का भूखंड,,
हो न जिसका खंड खंड।
ऐसा अखंड है अपना झारखंड।।
©️®️ #AVSI ✍️
अद्भुत
जवाब देंहटाएंधन्यवाद 😊😊😊
हटाएंबहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद 😊😊😊
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