बस अपनी गति से चल रही थी। बस, बस पड़ाव आने पर रुकी। कुछ महिलाएं बस में चढ़ी। सीट के लिए इधर-उधर नज़रें दौड़ाई पर कहीं सीट खाली नहीं दिखी। ऐसे में एक महिला ने अपने सामने बैठे एक युवक से कहा, "तुम खड़े हो जाओ और अपनी सीट मुझे दे दो। शायद तुम काफी समय से बैठे ही आ रहे हो?"
युवक विनम्रता से बोला, "हां, बैठे ही आ रहे हैं पर,,,।
इतने में महिला, युवक की बात काटती हुई बोली, "पर क्या? एक महिला खड़ी है और तुम एक नौजवान होकर भी सीट पर बैठे हो।"
युवक ने कुछ बोलना चाहा पर अन्य महिलाएं भी जबरदस्ती उसे सीट खाली करने को कहने लगी। सभी महिलाएं उस महिला की हां में हां मिलाकर कहने लगी, "सही तो बोली, एक महिला खड़ी है और तुम नौजवान हो कर सीट पर बैठे हो। शर्म आनी चाहिए तुमको। पता नहीं, हमारे देश के नौजवानों को क्या हो गया है, एक महिला की इज्जत तो दूर, उसे अपनी सीट तक नहीं दे सकते।"
अन्य यात्री भी इस तमाशे को शौक से देख रहे थे और युवक पर सीट खाली करने का दवाब बना रहे थे परंतु खुद कोई भी यात्री सीट खाली करने को तैयार नहीं था। जब सभी यात्री महिला की साइड लेने लगे तो अंततः मजबूर होकर उस युवक को अपनी सीट खाली करनी पड़ी। जैसे ही वो युवक उठकर थोड़ा संभलते हुए अपने सीट के नीचे से कुछ निकालने लगा तो उसे देख कर सब हैरान रह गए। सभी के चेहरे का रंग फीका पड़ गया। युवक ने सीट के नीचे से अपनी बैशाखी निकाली और उसी के सहारे सीट छोड़कर बगल में खड़ा हो गया। अब उन महिलाओं सहित अन्य यात्री भी उसे अफसोस भरी निगाह से देखने लगे। अभी जो महिला सीट खाली करने कह रही थी, अब उसने वापस उस युवक से अपने सीट पर बैठने का अनुरोध किया पर अकारण इतना सुनने के बाद कौन-सा युवक दोबारा सीट पर बैठता? बस बिना कुछ कहे न में सर हिलाते हुए उस युवक ने अपने दोनों हाथ जोड़ लिए।।
सारांश - बिना किसी की मजबूरी जाने बगैर हमें किसी की भी भावनाओं को चोट नहीं पहुंचाना चाहिए। जरूरी नहीं कि मर्द है तो उसे कोई दिक्कत नहीं होगी। मिट्टी से बने हर शरीर में कुछ-न-कुछ खामी होती है फिर चाहे वो शरीर स्त्री की हो या पुरुष का...